Friday, November 22, 2013

मन की गति को कैसे संतुलित करें।  

बहुत पुरानी बात है। गंगा तट पर एक ऋषि का आश्रम था। उनके कई शिष्य थे, जिन्हें वह दुनिया भर का ज्ञान देते थे, कई गूढ़ विद्याओं की जानकारी देते थे। उनके अनेक शिष्यों में चार खास तौर से उन्हें प्रिय थे। जब उन चारों की शिक्षा पूरी हो गई तो उन्होंने एक बार उन्हें बुलाकर उनसे उनके अध्ययन के विषय में जानना चाहा।

उन्होंने कहा, ने तुम लोगों को बहुत सी चीजें सिखाई हैं पर मैं जानता चाहता हूं कि तुम लोगों में से किसने किस विद्या को सबसे ज्यादा पसंद किया और किसके प्रयोग पर तुम्हें सबसे अधिक प्रसन्नता होगी?श्

पहला शिष्य बोला, श्गुरुजी, मैंने आपके द्वारा दी गई शिक्षाओं में सबसे अधिक ध्यान मंत्र फूंककर आग बुझाने वाली विद्या पर दिया है। वह मुझे अच्छी तरह स्मरण है और मैं उसका कभी भी प्रयोग कर सकता हूं। बाकी मुझे कुछ खास याद नहीं।श् दूसरे शिष्य ने कहा, श्मैंने पानी पर चलने की कला को सीखने और उसके अभ्यास पर ज्यादा जोर दिया और अब मैं उसमें पारंगत हो गया हूं। आप कभी भी मेरी परीक्षा ले सकते हैं।श्

तीसरा शिष्य बोला, श्गुरुजी, मैंने तेज आंधी को मंत्र बल द्वारा शांत करने की कला अच्छी तरह सीख ली है। मैं इसमें किसी को मात दे सकता हूं।श्

चैथे शिष्य ने विनम्रतापूर्वक कहा, श्मेरी रुचि इन चीजों में नहीं रही। मैं बस मन को वश में रखने की कला ही ढंग से सीख पाया। मैंने उसी पर अतिरिक्त मेहनत भी की। मुझे लगता है हमलोग मन को नियंत्रण में रखकर ही जीवन को सामान्य रूप से जी सकते हैं।श्

इस पर ऋषि ने प्रसन्न होकर कहा, श्पुत्र, वास्तव में तुमने ही सभी शिक्षा की जड़ को पकड़ लिया है। किसी भी विद्या में दक्षता हासिल करने के लिए पहले मन की गति को वश में करना आवश्यक है। जिसने मन की गति पर अधिकार कर लिया समझ लो वह सभी तरह के मोह और लोभ को भी जीत लेगा, जो सुखी जीवन के लिए जरूरी है।

यदि आप घर में बड़े है.. दुनिया जहां का आपको ख्याल रखना होता है ऐसे में मन जबकि मन काफी चंचल होता है उसे स्थिर करना एक बड़ा मुष्किल काम होता है।  अब सोचिए कि आप एक गाड़ी चला रहे है और आपकी गाड़ी का ब्रेक काम न करें तो क्या होगा ?  गाड़ी किसी न किसी तो टकरा जाएगी ही।
बस यहीं हाल मन का होता है  मन की गति एकदम फास्ट होती है ।  इसे बस में करना मामूली बात नहीं है अच्छो अच्छों की हालत खराब हो जाती है।
कहा जाता है मन लागत लागत लागे ... मन भागत भागत भागे ।  किसी भी काम  में मन लगाया जावें तो थोड़ा समय जरूर लगेगा  पर मन लगते लगते लगेगा ।  और उसी तरह यदि मन भागना षुरू करता है तो बगैर ब्रेक के भागता है... सर्वोत्तम गति से भागता है फिर उसे कन्ट्रोल करना असंभव है।  इसे कंट्रोल करने के लिए सिर्फ आपको प्रयास करना होगा ।

ज्यादातर मन भटकता है तो किषोरावस्था में  या फिर वृद्धावस्था में  ।  इस उम्र में कोई भी काम में  ध्यान केन्द्रित नहीं होता।  इससे परेषानी भी इसी उम्र में सबसे ज्यादा होती है।  मन को साधने के प्रयास में पूरा जीवन निकल जाता है।  लेकिन  मन की गति में ब्रेक लगाने का प्रयास भी इसी उम्र में किया जाता है।  जबकि दिमाग बना ही इसलिए है कि वह इधर-उधर जाए. इसलिए इससे परेशान होने की जरूरत नहीं है. जो कभी रूक नहीं सकता उसे रोकने की कोशिश करना ही गलत है. मन जहां जाना चाहे उसे वहीं ले जाईये. आप अपनी समझ से तय करते हैं कि मेरा मन यहां होना चाहिए. लेकिन मन अपनी समझ से चलता है. हम आगे पीछे जो कुछ करते या सोचते हैं मन में वही सब चलता है. इसलिए वह जहां जा रहा है उसके साथ रहने की कोशिश करिए. अगर मन को सही रास्ते पर लाना ही है तो सही कामों की शुरूआत करिए. धीरे-धीरे मन स्थिर होने लगता है.

मन की गति को रोकने के लिए आप आईने का प्रयोग कर सकते हैं. इसमें आईने में थोड़ी देर बिना पलक झपकाए अपने चेहरे को देखना होता है. यह सबसे सरल विधि है. कुछ देर जितना हो सके अलपक आईने में अपने चेहरे को देखिए. चार-पांच मिनट भी कर सके तो बहुत अच्छा परिणाम होगा. चार-पांच मिनट अलपक देखने के बाद आंखे बंद कर लीजिए और जिस अवस्था में हैं उसी में थोड़ी देर रूकिये.
एक आसन का भी अभ्यास किया जा सकता है. इससे मन के साथ साथ शरीर को स्थिर करने की कला विकसित होगी  - वृद्धावस्था में  उर्जा का स्तर कम होता है. पर थोड़े ही प्रयास से आप स्थिर होने लगेंगे. आपको बस कुछ नहीं करना है. दिन में कभी भी एक दो बार आप अपने आप को स्थिर कर लीजिए. नीचे लिखी बातों को ध्यान से पढि़ए और एक प्रयास कीजिए।

सर्वप्रथम आप लेट जाइए । पूरे षरीर को एक एक बार हिला कर छोड़ दीजिए । निष्चिय कीजिए कि आप एक एक निश्चित समय तक आप अपने शरीर को हिलाएंगे नहीं. शरीर के किसी हिस्से को हिलाएंगे नहीं. एक अंगुली भी नहीं हिलाएंगे. आंखे बंद रखेंगे और शरीर के साथ कोई जोर-जबर्दस्ती नहीं करेंगे. बस कुछ देर के लिए शरीर को निढाल छोड़ देंगे जैसा बहुत थका होने पर होता है. फिर और मन से मन की आंखों को  अपने ही षरीर के हर एक अंग को देखने का आदेष देवें और मन की आंखों से अपने हर एक अंग को देखने का प्रयास करे जिसे आप देख सकते है।  यदि आप ऐसा कर पाए तो भागीरथी अग्रवाल का दावा है क आपका मन आपके कंट्रोल में आ जाएगा ।  विष्वास की जिए कि आपको इस प्रयास से आपको संतुश्टि मिलेगी और आपको बहुत जल्द आशानुकूल परिणाम मिलेंगे.
एक प्रयोग और कर सकते हैं. शरीर का श्रम खूब करिए. इतना कि शरीर थक जाए. शरीर का श्रम होता है तो बुद्धि को सहज ही विश्राम मिल जाता है. शरीर के श्रम से शर्म मत करिए. जितना हो सके, हाड़तोड़ मेहनत करिए. शांत और एकाग्र होने का यह सबसे आसान तरीका है.
अगर कुछ भी संभव न हो रहा हो तो उसे याद करिए उस व्यक्ति को जो आपको सर्वप्रिय है। मन स्थिर हो जाएगा.

आईए हम आपको आपके मन के घोड़े की गति को थोड़ा लगाम लगाने के लिए प्रयास करते है। मनुश्य को मन को काबू में रखने के लिए मन को ध्यान में लगाना जरूरी है - कैसे...
1. एक सरल आसन में बैठे.. फिर खुली आंखों से किसी एक बिंदु पर धान केन्द्रित करें । और लगातार बिना पलक झपके जितनी देर उस बिंदु को देख सकें देखते रहे।
इस क्रिया को दिन में 5 बार करें।
2. जब आपका मन विचलित हो तो 108 मनके की माला लें. एक लंबी सांस लेवें.. और एक मनका फेरे और अपने सबसे प्रिय चीज को  याद करें । यह क्रिया दोहराते रहे ।

5. वैकल्पिक नथुना साँस लेने का अभ्यास करें. नीचे बाएँ नथुने पकड़ और अधिकार के माध्यम से गिनें, तो सांस रोक. , बाएँ नथुने रिलीज सही एक दबाए रखें और बाएं के माध्यम से साँस छोड़ते. इस क्रिया को अनुलोम विलोम कहते है इसे बड़ी आसानी से किया जा सकता है।

कार्य का संचार करें।
1. दुनिया में यदि सबसे गतिमान चीज है तो वह है मन !  सबसे चंचल .. उसकी गति को आज तक कोई नहीं माप सका।   तो हम आप क्या चीज है।  लेकिन आपकी  मन की चंचलता/ चपलता पर सिर्फ आप और सिर्फ आप ही  ब्रेक लगा सकते है  कैसे - यदि आप लिखने में सक्षम है। तो आप एक कलम उठाईए.. कापी लीजिए और उसमें आपके मन में आए विचारों को लिखना षुरू कर दीजिए...  जैसे ही आप लिखेंगे  आपके मन में विचार आना बंद हो जाएगें ।  जैसे ही कलम रूकेगी.. विचारों को सिलसिला फिर षुरू हो जाएगा।
2. आप आंख बंद कीजिए और अपने आप से सवाल करना षुरू कीजिए  जैेसे
1. सोचिए कि आपको सबसे अच्छा क्या लगता है -
2. आप सबसे ज्यादा जिसे पसंद करते है..
3. आपको क्या खाना पसंद है..
4. आप कुछ नया करना चाहते है क्या...
5. आप किससे मिलना चाहते है..
6. आपका अभी तक सबसे खुषनुमा दिन कौन सा था।
7. आपका सबसे बड़ा अनुभव क्या था ?

इस तरह से जो आप के मन मे चल रहा है उसी पर सवाल बनाना षुरू करें.. जैसे ही आप सवाल बनाएगे.. आपको मन कंट्रोल में हो जाएगा  अतः सवाल करते रहे... और जब तक आपका हाथ न थक जाए आपके मन में आए हर बात को हर विचार को  हर सोच को चाहे वे हजारों हो सब कुछ लिखने की कोषिष करें...  आप चाहे तो अपने विचारों और सोच के को यदि आप लिख लेवें तो एक बड़ा उपन्यास बड़ी आसानी से लिख सकते है।

3. यदि आपके मन में कोई असंतोश हो तो बजाय उसे मन में रखने के आप अपने सबसे निकट व्यक्ति कों इसके बारे में बता देवें और अपना मन हलका कर लेवें।  अपने मन के असंतोश भरे विचारों से आप तब तक दुखी रहेंगे जब तक उन  विचारों को निकाल बाहर करेगे।  अतः उन सभी बातों को जिसे आप पसंद नहीं करते उसे अपने किसी निकट के व्यक्ति को बता देवें ।

4. आप ने जाने अन्जाने कोई गलती की .. उस गलती को सिर्फ आप ही जानते है।  तो आपको  माफी मांगनी चाहिए।  यदि आपने जिसके प्रति कुछ गलत किया है तो आप उससे माफी मांग सकते है  इसके बावजूद यदि आप माफी उससे मांफी नहीं मांग सकते तो अपने आप ही मन में या जोर से बोल कर माफी मांग लेवें आपका अपराध क्षम्य हो जाएगा ।

रचनात्मकता  कार्य करें।
1. यदि आप कोई भी  कला जानते है तो उसे पुनः षुरू करें।  चाहे वह पेन से ड्राईग बनाना ही क्यों न हो । इससे आप अपनी  भावनाओं पर नकेल डाल सकते है।

2. अपने पसंदीदा भजन को गुनगुनाईए शांति भाव से अपने सबसे प्रिय देवी देवता को नमन करते हुए उनका मनन कीजिए .

3. घर के जिस कोने में आपको जाने का मन करता हो चले जावें.. और जो जी में वह काम करें।

सक्रियता बनाए रखें  -
1. आपको बैठना अच्छा लगता है बैठो - आपको घूमना अच्छा लगता है घूमे.. आपको रोना अच्छा लगता है रो लंेवे, आपको हंसना अच्छा लगता है हसें ... जोर जोर से... दिन में कम से कम सोए.. क्योंकि यदि आपकी नींद दिन में पूरी हो जाएगी तो रात में नींद आएगी ही नहीं।   अत‘ सिर्फ रात में ही सोने का प्रयास करें।  यदि एक - दो - तीन दिन यदि आप दिन में नहीं सोएगे तो  रात में आपको जर्बदस्त नींद आएगी।

2. संगीत सुने.. आपको जो सुनना है सुने.. प्रवचन सुने.  भागवतगीता का प्रवचन सदैव लाभकारी होता है।  मन को केन्द्रित कर पूरी तरह ध्यान अपने पसंदीदा गीत सुन सकते है।
3. शहर के सुंदर भाग में टहलने के लिए जाओ, और अपने पर्यावरण पेड़ पौधों को निहारों... उनमें खूूबसूरती तलाष कर उनकी छवि मन में कैद कर लों और जब मन विचलित हो तो उनको फिर से अपने मन की आंखों से देखों आपका मन अवष्य षांत होगा। जमत.

स्वीकृति
1. आप स्वीकार करें .. कि आपको क्या अच्छा लगता है.. उसकी एक सूची बनाए।
2. आप दूसरों की तारीफ या सराहना करना षुरू करें।
3. स्वयं की मानसिक तकलीफो  को किसी को बताने की अपेक्षा किसी कापी में लिख देवें।
4. स्वीकार करें कि आप जैसा जिसको देंगे - आपको वैसा ही मिलेगा ।
5. स्वीकार करें कि आप जैसा सोचेगे.. वैसा ही आपको मिलेगा।
6. इस बात को अच्छी तरह स्वीकार करें कि दुनिया में आपका कोई सबसे अच्छा षुभचिंतक यदि कोई है तों  सिर्फ आप ही आपके सबसे अच्छे षुभचिंतक है।
7. खुद को अपना सबसे अच्छे दोस्त समझे . आपके मन में क्या है अपने आप को बताओ, और आपको मजा आएगा जब आप अपने आप से कोई बात बताएगे तो आपको अंदर वाला दोस्त ही उस बात को जवाब देंगा ।

संबंध
1. आपके पचासों रिष्तेदार होंगे जब आपको सुख होगा तब सभी उस सुख में भागीदार बन सकते है।  पर दुनिया का कड़वा सच यह है कि  यदि आपका मन कमजोर हुआ तो आपको  तनाव होगा। उस तनाव से  आपको कोई न कोई बिमारी जकड़ लेगी।  और उस बिमारी की वजह से आपको मानसिक तनाव के साथ षारीरिक दुख होगा।
खास बात यह है कि उस दुख को आपको स्वयं ही अकेले सहना होगा।  उस षारीरिक दुख को आपको प्रिय व्यक्ति भी अपने उपर नहीं ले सकता  चाहे तो भी नहीं ले सकता ।
आपके गलत विचार आपके स्वयं के लिए तनाव पैदा करते हैं. इसलिए जब कोई गलत विचार आए तो अपने प्रिय वस्तु को याद करें उन गलत विचारों को वहीं पर रोंक देवें।  यही स्वस्थ रहने का एक मात्र उपाय है।